बाँट दिया इस धरती को,
चाँद सितारों का क्या होगा?
नदियों के कुछ नाम रखे,
बहती धारों का क्या होगा?
शिव की गंगा भी पानी है,
आबे ज़मज़म भी पानी,
मुल्ला भी पिए,पंडित भी पिए,
पानी का मज़हब क्या होगा?
इन फिरकापरस्तों से पूछो
क्या सूरज अलग बनाओगे?
एक हवा में साँस है सबकी,
क्या हवा भी नयी चलाओगे?
नस्लों का करे जो बटवारा
रहबर वो कौम का ढोंगी है,
क्या खुदा ने मंदिर तोडा था
या राम ने मस्जिद तोड़ी है?
माँ बाप को तो कुछ नाम से ही,
ममता को कैसे बाँटोगे?
जिस पिता ने पाला है सबको,
उस त्याग को कैसे बाँटोगे?
नौ महीने कोख में तुम भी थे,
उतना ही समय हमने काटा,
दोनों को जन्म दिया जिसने,
उस कोख को कैसे बाँटोगे?
कैसे बाँटोगे भाई और भाई के
बीच के स्नेह को तुम
दूजे घर जाती बहना की
करुणा से भरे नेह को तुम
घर की बेटी जब नारी है,
तो दूजे की बेटी क्या होगी?
नारी तो खुद दुर्गा है न,
दुर्गा की जाती क्या होगी?
मानवता में जो भेद करे,
ये किस समाज की अर्ज़ी है?
शिक्षा में रह गयी कोई कमी,
या खुद बनना तुम्हे फ़र्ज़ी है?
क्या फ़र्ज़ हमारा कहता है,
पूछो उन वीर जवानों से,
दिन रात जो रखवाली करते हैं,
बाहर के हैवानों से
जिनके रक्त से सिंचित होती,
भारत माँ की धरती है
परिजन के उनके करुण विलाप से,
किसकी आँखें न भरती है?
जो जाति धरम और गोत्र से उठकर ,
जय हिन्द का नारा गाते हैं
जब हम सोते हैं अपने घरों में,
वो अपनी जान गंवाते हैं?
वो गूथते हैं देश को खून से,
सुन्दर मोती की हारों में
हम रोज़ बेचते फ़र्ज़ को अपने,
मानवता के बाज़ारों में
गर यही सिलसिला चला कहीं तो
फिर भविष्य का क्या होगा?
हम तुम तो कुछ दिन और सही,
आने वालों का क्या होगा?
गर एक हुआ न अब समाज,
आगे जाने फिर क्या होगा!
जो हुआ न भारत माता का,
वो अपनी माँ का क्या होगा!!
नहीं रहते दो पशु साथ साथ,
गर रूप रंग हो बिलग बिलग,
जंगल है एक है एक अधर,
फिर भी रहते सब अलग अलग
ये हमपर निर्भर करता है की,
कैसा हमको बनना है!
सब भेद भुला मानव बन ले,
या पशु की जाति में रहना है?
रहना समाज की कालिख में,
या'रोशन' बनके उभरना है?
चाहो तो उड़ लो खुले गगन में,
या फिर पिंजरे में रहना है?
गर बाँट सको तो बाँट लो फिर,
मानवता के मूलों को,
जिसे एक बनाया अल्लाह ने,
दो बिलग बिलग से फूलों को
कितनी भी कर लो जद्दोजहद,
न खुदा यहाँ बन पाओगे,
इंसान बनाकर भेजा था,
इंसान ही बनकर जाओगे
जब ऊपर पूछा जायेगा,
क्या मुँह उसको दिखलाओगे?
इंसान से ही गर बैर करोगे,
कहीं न पूजे जाओगे।
इंसान से ही गर बैर करोगे,
कहीं न पूजे जाओगे।।
-आशुतोष राणा

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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