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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

वेदप्रकाश वेद की कविता- हँसी खेल नहीं है

Mar 12, 2024 | कविताएं - शायरी - ग़ज़ल | लिखन्तु - ऑफिसियल  |  👁 112,459


लड़का
लड़की के चक्कर में
रोज़ाना छह मील से आता था,
उसे छेड़ता था और एक ही गाना गाता था—
तेरे घर के सामने एक घर बनाऊँगा।
तेरे घर के सामने एक घर बनाऊँगा।

लड़की को ये बातें
बिल्कुल भी नहीं पचती थीं,
वो ऐसी-वैसी बातों से बचती ,
सो मरती क्या न करती
एक दिन डरती-डरती
अपने बाप को सारी बातें बता बैठी
बाप की मूँछें ग़ुस्से में ऐंठी— अच्छा!
मेरे घर के सामने घर बनाने का ख़्वाब?
लगता है,
उसके दिन आ गए
ख़राब बरबाद होना उसकी क़िस्मत में है लिखा,
अब कभी गा दे ये गाना दोबारा,
तो कहना घर बनाने की छोड़ तू ख़ाली प्लॉट लेकर ही दिखा?

बीस हज़ार का भाव है,
मेरी कॉलोनी में
पूरा का पूरा खप जाएगा,
प्लॉट के बदले ख़ुद नप जाएगा।

यदि हो ही जाए कोई अजूबा
पूरा कर ही ले वो अपना मंसूबा
तो बेटी!
तू भी निस्संकोच उसको वर लेना
एक झटके में शादी कर लेना
क्योंकि वो लड़का,
जीवन के किसी भी स्तर पर
फ़ेल नहीं है,
घर बनाना आज के ज़माने में
कोई हँसी-खेल नहीं है।
और ये बात
इसलिए बता रहा हूँ
कि ये झटके मुझे भी झेलने पड़े थे,
बिना घर बनाए तो तेरी मम्मी से
मेरे भी फेरे नहीं पड़े थे
जब मेरे ससुर
यानी तेरे नाना ने
ये ही शर्त रखी तो
मुझे चिंता सताने लगी,
सपनों में
तेरी मम्मी की बजाय ईंटें आने लगीं।

सोते-जागते उठते-बैठते
सीमेंट-सीमेंट चिल्लाता था,
ये सब ही हो गए थे
तेरी मम्मी को पाने के ज़रिए
आह!
कैसे-कैसे चुभते थे
दुकानों पर रखे सरिए।

तेरी मम्मी और मेरे बीच में
पचास गज़
ज़मीन का टुकड़ा
विलेन बनकर खड़ा था,
जिसमें नींव खोदने के चक्कर में
मेरी नींव हिल गई,
मकान ज्यों-ज्यों ऊपर उठता
मैं बैठने लगता
दिल में आता था
लैंटर की जगह ख़ुद पड़ जाऊँ।
इसलिए कहता हूँ मुनिया,
गाने से कुछ नहीं होता, हमें पता है,
जिस दिन से बना है,
बैंक की पासबुक लापता है
रो पड़ता हूँ जब
याद करता हूँ उन सालों को
तेरी मम्मी मुझे ख़त लिखती थी,
मैं म्युनिसिपैलिटी वालों को
अब तुझे क्या बताऊँ
तय नहीं कर पाता हूँ कि
ज़्यादा चक्कर
तेरे मम्मी की गली के लगाए
कि म्युनिसिपैलिटी के दफ़्तर के,
चक्कर में एक घर के।

-वेदप्रकाश वेद





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