"कंचन योगेंद्र अग्रवाल की कविता - बिरज (ब्रज) में होली खेले नंदलाल - ब्रज और नंदलाल की सुप्रशिद्ध होली के ऊपर अति सुन्दर कविता - इस वर्ष की लिखन्तु ऑफिसियल पर बेहतरीन होली कविता"
गगन में उड़े रे अबीर गुलाल,
बिरज में होली खेले नंदलाल l
ग्वाल बाल सब हल मिल आए,
भर भर के पिचकारी लाए,
रहे गोपियों पर रंग डाल l
गगन में उड़े रे अबीर गुलाल----
राधा जी सुंदर सुकुमारी,
छैल छबीले बांके बिहारी,
देख कर नयन हुए हैं निहाल,
गगन में उड़े रे अबीर गुलाल----
कान्हा जी चुपके से आए,
राधा जी को रंग लगाएँ ,
राधा जी हो गई गुलाबी लाल l
गगन में उड़े रे अबीर गुलाल----
ए री सखी मैं तो हुई बावरी,
देखी जो मैंने सूरत सवारी,
मैं भी हो गई लालम-लालl
गगन में उड़े रे वीर गुलाल----
बिरज में होली खेले नंदलाल,
गगन में उड़े रे अबीर गुलाल----
- कवियित्री - कंचन योगेंद्र अग्रवाल
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